शुक्रवार, 2 मार्च 2012

मैं अब भी इंतजार मे था ना जाने क्यूँ उसके .... हर पल हर लम्हे उसके वह जो मेरा ना था .... फिर वह लम्हा भी आया जहाँ प्यार ने मुझे अपनी बांहों अपनी बांहों मे समेट लिया उस की उंगलिया मेरे बालो मेरे बालो से खेलने लगी थी मैं आँखे बंद कर उसके सीने उसके सीने से लगा रहा और फिर उसकी गोद मे गोद मैं खुद कों पाया प्यार का यह लम्हा ऐसे था मैं खुद से मिल गया ऐसे जैसे रेगिस्तान मे एकाकार बारिश हो गई मैं तृप्ति पा गया ... --पवन अरोड़ा---