गुरुवार, 3 मई 2012

सौ साल के सिनेमा ने

कहते है कि ... जब जब समाज मे जिस नई चीज का विरोध होता है ... आने वाले समय मे समाज उसी का गुलाम हो जाता है ........ सौ साल के सिनेमा ने आज (आर्थिक युग)कुछ किर्तीमान ले लिये हों पर .... कुछ दिनो पहले तक समाजिक उपेक्षा से भी सारोकार होना पड़ा है । लोगों ने इसका विरोध भी किया है औरदेखने वाले खुब कोसे भी जाते थे ..... कुछ यही हाल विदेशी चैनलओ को लेकर हुआ तब mtv आदि को लेकर हाय तौबा हुयी ........ और बही चैनल एक नयी जनरेशन को पागल किये हुये है ..... कुछ भी हो .....जिन फिल्मो ने विपरीत हवाओ मे अपने को ढाल लिया ..... जिन अभिनेता अभिनेत्रीयों ने विपरीत परस्थीतियों मे काम किया ........ उनका लोहा आज भी उतना ही खरा है जितना पहले था ...... लेकिन एक खतरा भी है आज के सिनेमा मे वंशवाद भाई भतिजावाद....... आगया है ... और ये हर उस ...कलाकार को रोकता है जिसका जन्म अभिनय के लिये हुआ है और कही न कही उसे एक दलदल मे भी धकेलता है जिसका कोई मन्जिल नहीं होती ...... सौ साल ....... बाद सिनेमा किस रंग मे रंग रहा है ...... और इसकी कहानियाँ क्या कह रही है एक तरफ़ सिविक्ल का दौर है ..... मतलब कहानियों का टोटा ..... और दुसरी तरफ़ .... बरबरा ... लिओन .. जैसे लोगों को .... बालिबुड मे जडें जमाने के लिये जमीन दी जा रही है ... क्या सतीश कौशिक ... रजनीकांत .. जैसे कलाकार ने जो मुकाम हासिल किया ...उसके लिये शारिरिक सुन्दरता चाहिये... ? जाने भी दो यारों ... की लोकप्रियता क्या कोई तोड नही है और तो और ... महंगी से महगी फ़िल्म वो मिठास नही दे सकती जो जाने भी दो यारो ने दिया..... अतत: -.. रीयल्टी शो को रीयल होना पडे़गा ... और सिनेमा को व्यबसाय से हटकर .. व्यव्हारिक होना पडेगा...... फ़िल्मी भविष्यव्क्ता कुछ भी कहे ...... पर आने वाला समय ... बहुत कुछ कहने वाला है ........

गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

बस दिल्ली का समाचार है

सबसे पहले हम पहुँचे।
हो करके बेदम पहुँचे।
हर चैनल में होड़ मची है,
दिखलाने को गम पहुँचे।

सब कहने का अधिकार है।
चौथा-खम्भा क्यूँ बीमार है।
गाँव में बेबस लोग तड़पते,
बस दिल्ली का समाचार है।

समाचार हालात बताते।
लोगों के जज्बात बताते।
अंधकार में चकाचौंध है,
दिन को भी वे रात बताते।

चौथा - खम्भा दर्पण है।
प्रायः त्याग-समर्पण है।
भटके हैं कुछ लोग यही तो,
सुमन-भाव का अर्पण है।