बचपन के बाद जब ,जिस दिन भी , जिस पल भी ,हम सब कुछ समझने लगते हैं....वही सब जिसे दुनियादारी कहते हैं....उसी समय से लगता है जैसे एक आवरण, कोई मुखौटा ओढ के ...या कि वो खुद ब खुद ही हमें ढक लेता है ..जीने लगते हैं। ये मुखौटा ..समय असमय हमारे असली स्वरूप , हमारे सच को, छुपाने बचाने का काम करता है । ऐसा नहीं है कि हर बार ये किसी गलत उद्देश्य ...या किसी गलत नीयत के कारण होता है...बल्कि कई बार तो इस पर आपका....हमारा नियंत्रण भी नहीं होता ,.मगर ये आवरण आ जरूर जाता है ।तो आज इस मंच पर यही सवाल है आपसे मुखातिब..बताईये क्या आपको भी यही लगता है। क्या आप भी ओढ लेते हैं ऐसे आवरण....या कोई है ऐसा आपके आसपास..जो आपको लगता है कि ..जिसका सच का रूप आपके सामने नहीं आता .....और जो भी आपके मन में हो.....बांटिये न..। इस बात को आपकी प्रतिक्रियाओं के बाद आगे बढाया जाएगा...॥
सोमवार, 2 नवंबर 2009
आवरण ओढे जिंदगी...
गुरुवार, 11 जून 2009
पंगेबाज के पंगे से .....
पंगेबाज के पंगे से, हो गया तगड़ा पंगा जी.....
ब्लोग्गेर्स भिड गए आपस में, ऐसा हुआ फिर दंगा जी....
कैसा हुआ ये दंगा, चंहु और है यही नजारा ....
पहले पन्ने पर , किसी न किसी रूप में , इसने है पाँव पसारा ...
इसने पाँव पसारा ऐसा, कि, बड़े बड़े भी उखड गए...
वाघा बौर्डर खींच कर, कुछ इधर गए, कुछ उधर गए...
कुछ उधर गए , कुछ उजड़ गए,
पोस्ट हटाई, माफी माँगी , पंगेबाज जी घर गए....
पंगेबाज जी घर गए , छोड़ दिया मैदान...
ब्लोग्गरों ने सम्भाला मोर्चा, लड़ रहे घमासान...
लड़ रहे घमासान.,कि अभी तो ये आग लगी रहेगी...
किसी न किसी ब्लॉग पर , पोस्ट वो टंगी रहेगी...
पोस्ट वो टंगी रहेगी, होगा फिर शाश्त्रार्थ...
अदालतों से कौन ले पंगा, यही है भावार्थ.....
यही है भावार्थ बन्दे, सत्य समझ के मान.....
युद्ध चला जो और , हम बन संजय करेंगे बखान.......
भैया ये कविता ..उन सभी पंगों को हमारी श्रद्धांजलि है जो सब पंगई में लगे हैं..
गुरुवार, 4 जून 2009
युवा हुई संसद
सोमवार, 18 मई 2009
~~~~~~मैं हूँ न ~~~~~~
या सो गए है
दुन्ढ़ रहे है किसी मदद गार को
इस भीड़ में
अपने यार को
जो आप का दे शाथ
पकड़ के हाथ
आप को फूलो सी सौगात
और सब कुछ मीठी
मुस्कराहट के साथ
अगर आप को याद है वो बात
जो मैं ने पहल भी कही है कई बार
दिल से मेरे यार
वो आज भी कहूँ
ये जरुरी नही
बस दोस्ती जरुरी है
पर उससे जयादा जरुरी
पक्का वादा जो स्वयम किया गया हो
सच में दोस्ती एक नया हस्सास है
दोस्त ,
मैं हूँ न
आप के शाथ और आप किसके है साथ ? " "
शुक्रवार, 15 मई 2009
पहेली ....
सोमवार, 11 मई 2009
~~~~माँ~~~~~

माँ
माँ माँ शब्दों की मोहताज़ नहीं
एक एह्स्सास है
माँ ठंडी छाँव मे सुलाती
आँचल दे आप धुप मे बेठी
मुझे धुप ना लगने देती
जन्म से पहले कोख मे रख
ठंडक देती माँ
क्या माँ मे तेरा ऋण उतार पाऊंगा
माँ तुने कोख मैं रखा
क्या मे तुझे साथ भी रख पाऊंगा
माँ माँ तू जननी मेरी
पहचान मेरी
क्या तेरी पहचान बन पाऊंगा
माँ तुमने सीचते सीचते पाला माली की तरह
क्या मैं तुम्हे ठंडी छाँव पहुचाहूँगा
कदम कदम बढ़ता देख
बचपन से जवानी मे पाले कई सपने तुने
क्या मे पूरा कर पाऊंगा
तेरा प्रेम निस्वार्थ
क्या मे स्वार्थ मे भी प्रेम कर पाऊंगा
माँ नहीं मैं तेरा ऋण ना चुका पाऊंगा
इस जन्म मे क्या मैं भी 'पवन' श्रवन बन पाऊंगा
पवन अरोडा
~~~~तुम~~~~~

तुम मुझे क्यूँ
अपने होने का एह्स्सास दिलाती हो
क्यूँ तुम चोरी चोरी
मेरे सपनो मे आती हो
तुम एह्स्सास हो मेरा
मेरे आस पास हो तुम
तुम्हे पाना मेरा सपना नहीं जिन्दगी है
तुम मेरी कल्पना नहीं हक्कीत हो
तुम तुम नहीं मेरी साँसे हो
इन आँखों की रौशनी हो तुम
मेरे दिल की धड़कन
फिजाओं मैं फैली खुशबू हो तुम
तेरी एक एक अदा मुझे अच्छी लगती है
जब जुल्फों को तुम इतरा के पीछे करती हो
ऐसा लगता है चाँद जो छुपा था
बादलो मैं निकल आया
मुस्कराने से तेरे
सूरज की तरह चमक उठता है मेरा जहां
तुम्हे पाना रब को पाना है
तुम्हे साथ ले इस जहाँ से दूर चले जाना है
जहाँ तुम और मैं
एक नया आशियाना बनायेंगे
अपनी प्यार भरी छोटी सी दुनिया बसायेंगे
~~~~~~पवन अरोडा~~~~~~~~
रविवार, 10 मई 2009
प्रेम पत्र

बहुत साल पहले एक छोटी सी कविता पढी थी, शायद किन्ही पल्लव जी ने लिखी थी , मुझे अब भी उतनी ही प्रभावी और सामयिक लगती है.......पढिये और बताइये क्या आपको भी.....
क्या तुम मुझे वे सारे पत्र लौटा दोगी,
जो मैंने लिखे थे तुम्हें,
एक एक कर कई बार,
तुम नहीं जानती,
यह ऐसा समय है,
जब प्रतिबन्ध लगा है सपने देखने पर,
कविताओं की बात करने पर,
जब दोस्त हँसते हैं,
और,
चिट्ठियाँ लिखना ,
लगभग मूर्खता समझा जाता है,
मैं पढ़ना चाहता हूँ,
उन पत्रों फ़िर एक बार,
आख़िर क्यूँ लिख गया था,
तुम्हें मैं वे प्रेम पत्र............
गुरुवार, 7 मई 2009
इरादा ....
इरादा तो इतना है की कब्र से भी निकल आऊं ।
पर केवल उजाले के लिए । यही एक चीज मुझे कब्र से भी बाहर निकाल सकती है ।
मजाक नही कर रहा ....अभी तुमने मुझे जाना ही नही ।
बुधवार, 6 मई 2009
मैं क्या लिखू
पर जब समझने वाला जान कर न समझे
तो मैं क्या लिखूं और क्यों लिखू
गुरुवार, 30 अप्रैल 2009
उजाला ....
मेरे लिए नही यह कोई नई बात है । सारे जग में कर दूंगी उजाला ।
हिम्मत है तो रोक कर दिखाओं ।
.................. रोशनी
बुधवार, 29 अप्रैल 2009
चुनाव (जिन्दगी का सबसे मुस्किल काम )
जिन्दगी के आज तक के चुनाव में हमेशा लोगो ने सहयोग किया ,
क्या सही क्या ग़लत और ग़लत है तो कितना सही इत्यादी
पर मत दान एक एसा चुनाव है की समझ में नही आता की किसको चुनो
और क्यो चुनो इसमे इसा क्या है की इनको पाच साल का ताज दे दूँ क्यो .......
पर यदी न चुनो तो क्या करे......
कल जब बटन दवाऊंगा तो कुछ सेकंड की बीप मुझसे क्या कह रही होगी
की ...... तुम सबसे बेकार हो जो सबसे बेकार को चुना है .................
या तुम ठीक हो क्यो की ये इनसब में सबसे सही है....................
पिछले कई चेहरे देखे ..............पर सच पुछू तो सायद ही कोई होगा जो तमीज जनता हो .........
वैसे मेरे यहाँने महिलाये है जो जीतेंगी पहल से सबको मालूम है पर फिर भी...
सब पार्टी ने अपने मनिफेस्तो निकला पर चुनावी प्रत्याशी यो ने क्यो नही निकला की उनकी भविष्य की नीतियाँक्या है और इस जिले को किस प्रकार जिलाएंगे
बहुत उल्जहन है ........ सच में ...........
आप मेरी मदद कर सकते है क्या ? ......... ( उल्जन दूर करने में )
फिर अपने में जबाब धुन्धता हूँ ...........................
इसके दो प्रकार है
१- कि बड़ी प्रतियों के प्रतिनिधि नही होने चाहिए। मतलब कि उनके उम्मीद बार नही होने चहिये आप उनके प्रधानमंत्री के दावे दार को ध्यान में रखकर वोट दे और उनका प्रतिनिधि जिला शहर गाव मोहल्ला उस चुनाव के प्रचारका प्रवंध करे और जितने के बाद वो ही जिमेदारी निभाए ..........
इसप्रकार जीत के बाद उसके जिम्मे होगा पुरा का पूरा दावेदार वो मोहल्ले के नाते काम तो आएगा
क्योकि जब दूसरा आता है तब अपनी गलती किसके सर फोड़ दो कि एक तरफ प्रधान मंत्री को धयान में रखकर केवोट दिया था तो सांसद क्यो बात करे और क्यो सुने वो हमारी ..... और अगर सुन लिया तो भी काम नही होगा बादमें ख़राब पोजिशन के करण कोई और उम्मीद बार होता हैऔर वो तो कही और से लड़ा होता है
ये तो ग़लत है न हम लोग ठगे से रह जाते है कि काकर न आया वोट
हर आफिस में रिश्वत देनी पड़ती है अगर मोहल्ले का सांसद हो तो कम से कम ये तो बचेगा हर किसी का
२- विदला टाटा रिलायंस वाली पार्टी आजायें ये अपनी पार्टी बनाये .........
जैसे बिडला समाज बादी पार्टी ----टाटा मनुबादी पार्टी
ये सभी मोहले में अपना जनसंपर्क कार्यालय खोले और लोगो कि कम्पलेंट को लिखे उसकी के अनुसार लोगो केभलाई के लिये कानून निर्माण करवाए और काम करवाए और समस्याए हल करे इनाधिकरियो का समाधान करेअपने अधिकारियो कि तरह इनको भी काम करना शिखाये कि क्या और कैसे होता है काम
तब तो ठीक है आपना जो सीईओ होगा जान पहचान का बस वोट उसी को
लेकिन इस पारकर कि वोटिंग तो बेकार में पैसा वार्बाद होता है और कोई सुभिधा नही मिलती है सब काम चोर डूटीपर होते है लोग धुप में मरे उनसे क्या
मौका पाते ही लाठीयां चलते है और लोगो की बगदाद के बीच , उसी बीच फर्जी वोट डालते है ये है अधिकारी
और लोग परेशान होने के करण चले जाते है
पर उनका भी वोट पड़ जाता है
वैसे वोट तो दूंगा पर उल्जहन के साथ काश चुनाव आयोग मेरी मदद करे इस उलझन को मिटने में .......
आप का वोट आप की ताक़त
इसबार भी कुछ लोग वोट से आयंगे पूरे पाच साल के लिए कही येशा न हो कि हम फिर कमजोर और मजबूर हो जाये
सोच समझ कर वोट दे
एक सपने के टूट जाने से जिंदगी ख़त्म नही हो जाती .....
कुछ ख़त्म हो गया तो क्या हुआ । बहुत कुछ अभी बाकी है , मेरे दोस्त .....कहाँ खो गए ।
दोस्त ! एक सपने के टूट जाने से जिंदगी ख़त्म नही हो जाती । बहुत से सपने अभी भी बुने
जा सकते है । टूटने दो यार एक सपने को ..वह टूटने के लिए ही था ।
हर शाम के बाद सुबह , हर सुबह के बाद शाम । यह तो प्रकृति का नियम है । अभी शाम है ...
मेरे दोस्त । सुबह का इन्तजार करो । आनेवाला ही है । फ़िर डर कैसा ? जम कर करो ,इन्तजार ।
क्या कहू दोस्त ....जीवन में अँधेरा भी तो जरुरी है । तभी तो उजाले का प्रश्फुटन होगा ।
अंधेरे के बाद का उजाला ज्यादा मीठा होता है । चख कर तो देखो ।
पढ़े लिखे अशिक्षित
आज भी किसी भी देश के लिए ये सबसे बड़ी उपलब्धि होती है की उसके सारे लोग शिक्षित हों, और इस लिहाज से अफ़सोस के साथ यही कहना पड़ता है की हम लाख कोशिशों , न जाने कितनी योजनाओं , कितना पैसा, और कितना सारा श्रम के बावजूद आज भी सिर्फ़ पचास प्रतिशत के आसपास हैं, और जो हालत हैं उसे देख कर तो ये लगता भी नहीं है की निकट भैविश्य में हम किसी भी तरह सरवोछ प्रतिशत तक पहुँच सकेंगे।
लेकिन इससे अलग एक और विचारणीय पहलू ये है की क्या सचमुच ही जो पढ़ लिख गए हैं उन्हें हम शिक्षित मान लें। दरअसल मेरे कहने का मकसद ये है की इन आकडों पर नजर डालिए, आज घर टूटने यानि तलाक का प्रतिशत सबसे ज्यादा पढ़े लिखे परिवारों में ज्यादा है, अपराध की दर भी ग्रामीण क्षेत्रों , जहाँ निरक्षरता ज्यादा है वहां कम है और शहरों में ज्यादा है, आत्महत्या की दर सबसे अधिक उसी राज्ये की है जिस राज्ये के साक्षरता दर सबसे अधिक है । साक्षर्ती के साथ स्वाभाविक रूप से भ्रष्टाचार, मर्यादाहीनता, उछ्स्न्ख्लता, और वे सब दोष भी समाज को कमिल रहे हैं जो नहीं मिलने चाहिए। इसके अलावा, शिक्षा आज ख़ुद एक नियायामत न होकर विशुद्ध व्यापार बन कर रह गयी है। और दुःख की बात तो ये है की चाहे तरीका अलग हो मगर सरकारी और निजी शिक्षा संस्थान दोनों ही आज औचित्यहीन, से बन गए हैं। हमारे शिक्षक कभी देश के प्रबुध्ह वर्ग के अगुवा हुआ करते थे, आजादी की लड़ाई और उसका महत्व यदि अगली पीढी को समझ में आया था तो वो सिर्फ़ इन्ही के कारण, आज के हालातों में उनसे कोई बड़ी अपेक्षा करना तो बेमानी होगा, किंतु जो भी जितना पारिश्रमिक उन्हें मिल रहा है उसके अनुरूप तो उनके दायित्व निर्वहन की अपेक्षा की ही जा सकती है ।
दरअसल अब समय आ गया है की हमें अपनी पूरी शिक्षा प्रणाली, शिक्षा पद्धत्ति, बरसों से चली आ रही किताबों , पढाने के तरीकों , और उस पढ़ाई की सार्थकता पर नए सिरे से सोचना और समझना होगा। आज यदि हम इतिहास पढ़ रहे हैं तो अच्छी बात है, किंतु क्या ये जरूरी है की पही कक्षा से लेकर स्नातकोत्तर तक हम उन्ही अध्यायों के बार बार पढ़ते रहे, और उसके बाद उस ज्ञान का कोई औचित्य नहीं हो कम से कम रोजगार पाने के लिए तो नहीं ही। आज भी क्यूँ नहीं हमारे बच्चे अपनी शुरुआती कक्षाओं में ये तय कर सकते की उन्हें, आगे जाकर चित्रकार बनाना है, या मकेनिक, कोई खिलाड़ी बनना है या लेखक, और फ़िर उसी के अनुरूप उसकी आगी की पढ़ाई हो। ये ठीक है की बुनियादी शिक्षा तो सबक लिए अनिवार्य होनी चाहिए मगर उसके बाद के निर्णय ख़ुद उस बच्चे के।
मगर दिक्कत ये है की जिस देश में देश के संचालकों का शिक्षित होना कोई जरूरी नहीं है उस देश में पढ़ाई की अहमियत कोई जबरन क्यूँ समझे।
इन हालातों में तो मुझे यही लगता है की यदि आप चाहते हैं की आपकी अगली पीढी संस्कारवान हो, कम से कम उतनी तो जरूर ही की वो इस देश की इस समाज की और ख़ुद आपकी अहमियत समझे, और आपको अपने बुढापे में बेघर कर देने जैसी नौबत में न पहुचाये तो स्कूली शिक्षा के साथ उनमें वो संस्कार लाने की कोशिश करें जो देश को एक बेहतर भैविश्य दे सके........
सोमवार, 27 अप्रैल 2009
एक खुरचन धरती, एक कतरा आसमान....
आदमी तलाश ,
रहा खुद को,
जाने क्यूँ,नहीं मिलता ,
कोई भी इंसान.....?
जानता था कि,
हर गम के बाद,
खुशी का आना ,
तय है,
फिर भी ताउम्र
तलाशता रहा सुकून,
जिन्दगी बीत गयी,
इसी के दरमियान....
न मिटटी मेरी, न हवा,
न पानी, न पाषाण,
फिर भी हर दिल में ,
है यही अरमान,
एक खुरचन धरती,
एक कतरा आसमान......
क्यूँ है न......?
ajay kumar jha...9871205767.....
~~~~~इन्शान पार्ट 2 ~~~~~~
बात थी की DNA के साथ आज कल प्रयोग चल रहा है और इसपर स्वामी राम देव भी बोल चुके है एक आप जिस फर्मी बैंगन आलू गोभी गाजर टमाटर और भी सब्जी खा रहे है वो आप की भूख तो ख़त्म कर सकते है पर इसके शाट आप की जीवन लेला भी ख़तम कर सकते है
इसके प्रयोग अमेरिका एवं कई विकसित देश में चल रहे है उनकोकई मंजिल नीचऐ और बड़ी सब्दानी से रक्खा जाता है क्योकि उसका एक प्राग कण अगर मूल प्रकटी पे आजाये तो वो समूल प्रकटी के डी ने ऐ का वीनस का काम कर सकता है और इसा हुआ भी जब प्रयोग किया जारहा था तब कई घटनाये हुयी
मक्के पर जब शोध हो रहा था तब कुछ मक्के की जाती पर खतरा हो गया और जब उसका संसोधन हुआ तो उसके पराग कण को लेजाने वाले कीट मर गए उसपर बैठते ही । अब कीतो के उपयूक्त बनाया जा रहा है । आगे भगवान् मलिक .....
एक दिन दिस्कोउवेरी पर दिखाया गया की किसी ठंडे प्रदेश में एक गुप्त जगह एक भण्डार बनाया गया है और उसमे तरह तरह के बीज जो है पूरे दुनिया में उसको संकलित कर रहे है छोटे छोटे शीशी में उनका कहना है कि किसी खतरे को मद्दे नजर इस प्रकार कि चेज़े बचाकर रखना सही है हमारे भविष्य के लिए उनका मन्ना है कि गोलाबल वार्मिंग या कोई अंतरीच से दुर्घटना को मद्दे नजर ................. पर ................... एक डी ने ऐ से होने वाली वीनास लीला से पहले का संकलन तो नही। एक पुरानी ख़बर आज से लगभग दस साल पहले भैसे को इंजेक्शन लगाया जाता रहा और बैगानिक कि तरीग्फ़ कि जाती रही कि क्या अनोखा इंजेक्शन लगे जा रहा है कि बच्चे की जरुरत भी नही और दूध भी पूरा ......पर इंसान की बीमारी % बढ गया करण आज तक उल्टा पुल्टा और कई नसले समाप्त गिद्ध और कौए ये बात तो हम नही बैगानिक कह रहे है .............. इस मानव जाती ने एक नसल का सफाया कर दिया ( नादानी में ) गिद्ध जैसी नस्लों का सफाया कर दिया ...............अगला निशाना kun है पता नही कही हम तो नही ......................
कैसा लगा ये अंक इसप्रकार की बातें जानने के लिए देखे दिस्कोउवेरी और गयान वाले चैंनल
अगला अंक एक शहर और गाव कि बर्ता ............
शनिवार, 25 अप्रैल 2009
जीवन
सोचता हूँ । हमारे अलावा इस ब्रह्मांड में कही और जीवन है ???
अगर नही तो रोंगटे खड़े हो जाते है । इतने बड़े ब्रह्माण्ड में हम अकेले है !विश्वास नही होता ...लगता है , कोई तो जरुर होगा ।
फ़िर सोचता हूँ । आकाश को इतना फैला हुआ नही होना चाहिए । कुछ तो बंधन जरुरी है । भटकने का डर लगा रहता है ।
सुना है पृथ्वी गोल है । हो सकता है , ब्रह्माण्ड भी गोल हो । किसे पता ?? भाई हमारी भी तो एक सीमा है । सबकुछ नही जान सकते । कुछ दुरी तक ही भाग दौड़ कर सकते है । भाग दौड़ करते रहे । इसी का नाम तो जीवन है । इतना सलाह जरुर देना चाहुगा की सबकुछ जानने के चक्कर में न पड़े । यह एक बेकार की कवायद है । इस राह पर चल मंजिल को पाना तो दूर की बात है , खो जरुर देगे ।
इधर ये भी सुनने में आया है की एक क्षुद्र ग्रह पृथ्वी से टकराने वाला है ...शायद २०२८ में !
यह सनसनी है या हकीकत नही पता ।
अगर सनसनी है ...तो है ..पर वास्तव में ऐसा है तो परीक्षा की घड़ी आ गई है ...
इस खबर को सुनकर सुमेकर लेवी वाली घटना याद आती है , जब मै बच्चा था । सुमेकर बृहस्पति से जा टकराया था । यह घटना १९९४ की है । उस समय ऐसी ख़बर सुन डर गया था ।
देखते है ...२०२८ में क्या होता है .......
चम्बल का इतिहास
सुप्रिया रोय
चम्बल का इतिहास जनादेश से लिया गया है
http://janadesh।in/InnerPage।aspx?Category_Id=13
ambrish_kumar2000@yahoo।com
शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009
इंसान और डर (इंसान पार्ट १)
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~इंसान~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
कब जन्म हुआ कई राय है पर इस पर मेरी कोई राय नही । इंसान जंगल में रहने वाला जानवर था जो आज केवल कुछ जगह आदिवासी के रूप में जन जाता है । पर कल तक ये इंसान जंगल में अकेला रहता था और अन्य जंगली जानवर इस पर हमला करते थे व इसका शिकार करते थे । इसने अपना बचनेके लिए जन समूह में रहने लगे और इससे समुदाय का विकास हुआ | आज भी समुदाय में काम अच्छे प्रकार से किए जाते है या सब काम समुदाय के सिधांत पर ही किया जाता है ।
समुदाय में रहने पर इसको जंगली जानवरों से निपटने पर एक आसान तरीका मिल गया पर भोजन के लिए जंगलो पर निर्भर रहने वाला व्यक्ती jangaloo का डर जंगली जवारों का डर तो इसने आपने खाने के लिए खेती करना सुरु किया और जानवरों को बंधक बनाना सुरु किया इसके बदले वो जानवरों को सुराचा और खाना भी देते थे जो की उनके लिए जरुरी था पर .............. अब इनसानों के लिए डर कुछ और था ये था
इंसानों का डर क्योकि कुछ लोग ताक़त के बदले लूट पाट किया करते थे और समुदाय में रहने वाला इंसान के लिए ये चलते फिरते समुदाय (डाकू इत्यादी ) का डर था जो की इनको डरता था
इस डर से निपटने के लिए इसने कुछ उग्र सावाभ. वाले लोगो को सुरछा का जिम्मा दिया और हथियारों का निर्माण भी अब यहाँ से सुरु हुआ इंसान और इंसान के बीच में जानवरों का व्यव्हार इसका अन्तर अब दिखने लगा
छेत्र से जाती से darm से देश से ये कुछ शब्द आते ही इंसानों के बीच डर आता था और इंसान की तस्वीर दिखायी देने लगती थी जो आज तक चली आरही है
लेकिन समय के साथ एक नए तरीको ने जन्म लिया और इनसब को सुरछा और व्यापार एक साथ चाइये था
तो अलसी भर्स्ट लोगो ने विदेश से इसकी वाव्स्था की और फिर शुरू हुआ गुलामी और चापलूसी का युग जो चापलूस नही था वो ताक़त के दम पर गुलाम बनआ दिया जाता (मेरी राय में विना वोटिंग के आकडे चापलूसी के आकडे होते है) और एसा इतिहास में हुआ की कई देश गुलाम हुए गुलामी में भी डर होता है डर कल का अपने बच्चों के भविष्य का .........
इस गुलामी से उताका चुके लोगो ने vidodh ched दिया दुतीय विश्व युद्ध का करण था मंदी जो की गुलामी और वायपर निति के वजह से हुयी थी इस युद्ध में न जाने कितनी जाने गयी और इस प्रकार लोगो को युद्ध से डर लगने लगा |
और इंसान ने इस समय तक प्रकति के हर चीज पर कब्जा कर लिया था मतलब वो हवा में उड़ सकता था पानी में दूर तक जा सकता था और भी अब वो उनसभी जानवरों को अपने पास वंधक बना चुका था जो की उसका शिकार करते थे पर प्रकति और इंसान की लडाई बाकी थी
ये लडाई जानवरों और इंसानों से इंसानों की थी और अब इनका समाधान दुन्ढ़ लिया गयापर इंसान नही मानता वो डर रहा था प्रकती से और अगला हमला प्रकती एवं व्रम्हंद से था तो उस पर सुरु हो गया ......
इसने छोटे से छोटे चीजो पर खोज कर डाली एक चीज सामने आयी डी न ऐ सबसे सकती शाली चीज़ .........
इसने बताया की इंसान वन्दारो के समाज से है और इस लिए उसकी सभी चीजे बंदरो की तरह है जैसे किसी बंदरो के मरने पर सब बंदरो का प्रदर्शन वो इंसान भी करता है और दूसरो का भला न देखना वो इंसानों में भी मिलता है काम की चीजे न मिलने पर उत्पात मचाना वो इंसान भी करता है ...... इसलिए इंसानों में कुत्तो के डीअन ऐ का प्रोग चल रहा है की एक सुई से ये इंसान गुलामो कीतरह दौड़ कर काम करेगा ...... और भी इंसानों के कारनामे जानिए
अगले अंक में केवल और केवल मंच पर
मंगलवार, 21 अप्रैल 2009
आतंक ....
बाद में पश्चिमी देशों ने जहां अपने लिए ख़तरनाक सिद्ध होने वाले आतंकवादियों की धरपकड़ के लिए पाकिस्तान पर बहुत जोर बनाया, वहीं भारत के लिए खतरनाक माने जाने वाले आतंकवादी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई पर कम ध्यान दिया। इसी कारण अमेरिका के नेतृत्व में आतंकवाद विरोधी युद्ध तेज हुआ, पर भारत के खिलाफ पाकिस्तान की धरती से आतंकवादी वारदातों का सिलसिला शुरू हो गया। यह अमेरिका और पश्चिमी देशों की दोमुहीं निति थी जिसका खामियाजा आज भारत भुगत रहा है ।
आज हम अमेरिकी नेतृत्व में चल रहे आतंकविरोधी अभियान में सहयोग कर रहे है , अच्छी बात है , पर इस मामले में हमें उसका पिछलग्गू बनकर नहीं बनना चाहिए। इसकी बजाय हमें अपने दीर्घकालीन हितों के प्रति सचेत रहना चाहिए। हमें आतंकवाद से कैसे निपटना है- इसके लिए स्वतंत्र रणनीति अपनानी होगी . हमारी समस्या बिल्कुल अलग है अतः इसका समाधान भी अलग तरीके से ही होगा ।
निश्चित ही पाकिस्तान में पनप रहा आतंकवाद भारत और शेष दुनिया के लिए चिंता का विषय है, पर यह भी ध्यान में रखें कि यह तो पाकिस्तान में अमन-शांति चाहने वाले लोगों और वहां की लोकतांत्रिक ताकतों के लिए भी एक बड़ा खतरा है। वहां के अधिकाँश लोग और लोकतांत्रिक संगठन आतंकवाद की बढ़ती ताकत पर रोक चाहते हैं। वहां की लोकतांत्रिक ताकतें फाटा क्षेत्र, उत्तर पूर्वी सीमा प्रांत के कुछ इलाकों और स्वात घाटी पर तालिबान के बढ़ते नियंत्रण से बहुत चिंतित हैं। ऐसे में भारत वहां पर लोकतान्त्रिक प्रक्रिया को बढावा देने में सहयोग कर सकता है । यह भी याद रखना होगा की अगर तालिबान का प्रसार पकिस्तान में होता है तो कश्मीर में भी उनकी उपस्थिति से इनकार नही किया जा सकता है । यह एक घातक स्थिति होगी । हमें पहले ही तैयार रहना चाहिए ।
भारत को अपनी सुरक्षा को मजबूत बनाते हुए आतंकवाद से निपटना ही होगा, पर साथ ही यह कोशिश करनी होगी कि पाकिस्तान के अंदर दहशतगर्द पर लगाम लगाने का जो मैकनिज़म है, वह भी मजबूत हो। गौर करने वाली बात यह है कि कोई भी आतंकी घटना होने पर भारत से जब भड़काऊ पाकिस्तान-विरोधी बयान जारी होता है, तो इससे पाकिस्तान की कट्टरवादी, आतंकवादी ताकतें मजबूत होती हैं और अमन-पसंद शक्तियां कमजोर पड़ती हैं। भारत के बयान पाकिस्तान विरोधी न होकर वहां पनप रहे आतंकवाद पर चोट करने वाले होने चाहिए। ये बयान स्पष्टत: आतंकवाद और उससे होने वाली क्षति पर केंदित होने चाहिए।
भारत को इस बारे में अभियान जरूर चलाना चाहिए कि पाकिस्तान के आतंकवादियों, कट्टरपंथियों और तालिबानी तत्वों से भारत समेत पूरे विश्व को कितना गंभीर खतरा है, पर यह अभियान पाकविरोधी न होकर। पाकिस्तान से पोषित आतंकवाद का विरोधी होना चाहिए। इन तरह के अभियानों का फर्क समझना बहुत जरूरी है। पाकिस्तान के अंदर से संचालित हो रहे आतंकवाद के विरोध में अभियान चलाते या कोई बयान देते समय पाकिस्तान की आम जनता और लोकतांत्रिक ताकतों को यह अहसास नहीं होना चाहिए कि हम उन्हें घेर रहे हैं। अपितु उन्हें यह महसूस होना चाहिए कि दहशतगर्द के खिलाफ उनके संघर्ष में भारत उनके साथ है। हमारी यह सोच पाकिस्तान के मीडिया के माध्यम से वहां के लोगों तक पहुंचनी चाहिए।
भारत चूंकि दक्षिण एशिया का एक अहम व असरदार मुल्क है, इसलिए इस देश की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह विश्व के विभिन्न मंचों से दहशतगर्द और कट्टरपंथी ताकतों के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोगों व संगठनों को मजबूत करने में मदद दे। उनके ऐसे विरोध को बुलंद करने वाली जमीन तैयार करे। खास तौर से भारत और पाकिस्तान के अमन-पसंद लोगों के मेलजोल के मौकों को बढ़ानाए। ऐसी कोशिशों से ही दक्षिण एशिया में सांप्रदायिक सद्भाव का माहौल बनेगा। यह कोशिश भी पूरे जोर से की जानी चाहिए कि आतंकवादियों और कट्टरपंथी ताकतों द्वारा गुमराह युवा अगर अमन की राह पर लौटना चाहें, तो उनके परिवार के सहयोग से उनके पुनर्वास के प्रयास हों।
भारत के अंदर भी कुछ ऐसे लोग और ताकतें मौजूद हैं, जो धर्म को कट्टरपंथी हिंसा की राह पर ले जाना चाहती हैं। अगर हम पूरी दुनिया में पाकिस्तान पोषित आतंकवाद का मुद्दा उठा रहे हैं और उसके खिलाफ अभियान चलाना चाहते हैं, तो यह भी जरूर है कि अपने घर के भी इन कट्टरपंथी हिंसक तत्वों के विरुद्ध कड़े कदम उठाएं, ताकि हमारी कथनी और करनी में कोई फर्क न नजर आए। इन उपायों को आजमाने से पाकिस्तान पोषित आतंकवाद पर निश्चित रूप से लगाम लगेगी। इस क्षेत्र में लंबे समय तक शांति-स्थिरता कायम रह सकेगी। अगर हमारी कथनी और करनी में फर्क होता है तो आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई कमजोर हो जायेगी । आतंरिक अशांति को नियंत्रित कर ही हम बाह्य आतंकवाद पर लगाम लगा सकते है ।
शुक्रवार, 10 अप्रैल 2009
गरीबी और कफ़न में लिपटी हुई लाश
पेड़ के पास बैठा था
एक लड़का बहुत उदास
आगे पड़ी थी उसके एक
कफ़न में लिपटी हुई लाश
आते जाते सेठ साहुकार
फेक देते थे पैसे दो चार
मैंने पूछा कौन है , कैसे मारा
लड़का बोला साहब
बाप मेरा गरीबी से मरा
गरीबी शब्द सुनकर
मेरी आँखे भर आई
ऊपर वाले को कोसा मैंने
क्यों तुने गरीबी बनायीं
मैंने निकाले जेब से
अपने रुपये हजार
कहा भगवान् के सामने
कहो किसी की है चल पायी
जाओ अब करा दो
इनका अंतिम संस्कार
एक दिन मै मंदिर के
रास्ते से गुजर रहा था
देखा वही लड़का अपने
बाप के साथ ,आज अँधा बनकर
भीख मांग रहा था
अब कैसे करे कोई किसी भी
गरीब की बातो का ऐतबार
जब बन चुकी है गरीबी ही
आज इनका सबसे अच्छा रोजगार
सोमवार, 30 मार्च 2009
नेटवर्किग साईटस का नेट वर्किग
नेटवर्किग साईटस का नेट वर्किग
थोडा पिछे जाकर देखे तो ९० के दशक के मध्य मे ही आनलाईन क्म्यूनिटी के रुप मे सोशल नेटवर्किन्ग कि शुरुआत हुई थी । इस काम इन्तजाम देने वाली वेबसाईट थी “जियोसाइटस”ट्राइपोड,और दग्लोबल डॉट कॉम।
२००२-२००४ के बीच माइ-स्पेस, बेबो और फ्रेन्ड्स्टर बडी सोसल नेटवर्किग साइटस के रुप मे सामने आए।
लेकिन असली रिवोल्यूशन आया २००४ मे आर्कुट और फेस बुक से । इन्हने तेजी से पैर पसारे और सोशल नेटवर्किन्ग के काफी बडे हिस्से पर काबिज हो गऐ।
इन्ह दिनो बिजनेश के लिहाज से सबसे चर्चित लिन्क्डइन वेबसाईट ने थोडे ही वक्त मे २०० देशो मे करीब ३-६ करोड यूजर तैयार कर लिए है। इस साइट पर रोजाना लाखो नए यूजर जुड रहे है। लिन्क्डइन का दावा है कि फॉच्यून ५०० कम्प्नीयो के युजर यहॉ है।
ऑरकुट कि कहानी
इसके सस्थापक ऑरकुट बायोक्टेन के बारे मे मीडिया मे उस तरह नह छपता रहता जिस तरह फेसबुक के मालिक के बारे मे छपता है रहता है। २००४ मे गूगल ने ऑरकुट नामक अप्लीकेशन को खरीद लिया था । बायोक्टेन ने दरअसल अपनी गर्लफ्रेन्ड को खोजने के लिए एक ऐसी चीज की परिकल्पना की,जिसके जरिऐ वह उस का पत्ता लगा सके। बायोक्टेन जब छोटे थे तो स्कुल मे एक लड्की से उनकी दोस्ती हुई। लेकिन हाईस्कुल मे दोनो बिछुड गये। बहरहाल, बायोक्टेन २० साल के हुऐ तो वह आईटी के टेक्निकल आर्किटेक्ट बन गऐ और गर्लफ्रेन्ड के बिछडने का गम उनको परेशान करता रहा। तब उन्होने कम्प्यूटर इन्जनियरो से एक ऐसा सॉफ्टवेयर तैयार करने को कहा, जिसके जरिए मैसेज भेजे जा सके और दुसरा भी अपना मैसेज लिख सके। सोशल नेटवर्किग की भाषा मे इसी को स्क्रैप करना भी कहा जाता है। तीन साल की मशक्कत के और पैसा खर्च करने के बाद बायोक्टेन को अपनी खोई हुई गर्लफ्रेन्ड मिल गई।
गूगल को ऑरकुट खरीदने के पहले ही साल मे एक अरब रुपऐ का मुनाफा हुआ। ऑरकुट पर आपकी हर गतिविधि के एवज मे गूगल बायोक्टेन को कुछ पैसा देता है।
फैसबुक की कहानी
हॉवर्ड कॉलेज मे कम्प्यूटर साइन्स के स्टुडेन्ट मार्क जुकेरबर्ग ने अपने दो रुममेटस कि मदद से ४ फरवरी २००४ को फेसबुक की स्थापना की। इस साईट पर खुद को रजिस्टर करने की एक ही शर्त थी कि आप हॉर्वड के स्टुडेन्ट हो। लेकिन २००६ सितम्बर, मे जुकेरबर्ग ने इसका दरवाजा पुरी दुनिया के लिऐ खोल दिया। यही से सफलता कि सीढिया फेसबुक ने चढी कि ऑरकुट को पिछे धकेल दिया। २००६ मे याहू ने फैसबुक को एक अरब मे खरीदना चाहा लेकिन जुकेरबर्ग ने इसे ठूकरा दिया। दसल गूगल के पास ऑरकुट है तो रुपर्ट मर्डोक की कम्पनी न्यूजकॉर्प के पास माई स्पेस है जिसे खुद न्यूजकॉर्प ने २९ अरब मे खरीदा था।
दुनियॉ मे टॉप सोशल नेटवर्किग साईट
वेबसाईट महीने मे विजिट
www.facebook.com 1.1 अरब
www.myspace.com 81 करोड
www.twitter.com 5.4 करोड
www.flixter.com 5.3 करोड
www.linkedin.com 4.2 करोड
भारत मे टॉप नेटवरकिन्ग साइट्स
www.orkut .com 1.2 करोड
www.facebook.com 0.40 करोड
www.bharatstudents.com 33 लाख
www.hi15.com 20 लाख
www.ibibo.com 09 लाख
भारत मे पॉच करोड लोग सोशल नेटवर्किन्ग यूजर।
सोशल नेटवर्किन्ग साइटस पर ऑसतन 25 मिनट बिताता है।
भारत मे इन्टरनेट यूजर मे से एक तिहाई सोशल नेटवर्किन्ग साइट पर है।
हे प्रभु यह तेरापथ द्वारा रिचर्च
नवभारत टाईम्स अथवा नेट सोर्सिग के माध्यम से
धवल शाह मुख्या सोशलनेट के
विशेषज्ञ
http://ctup.blog.co.in/