शनिवार, 25 जून 2011

श्री पुण्य प्रसून बाजपाई जी के लिए
उठते उफान को जब शब्द नहीं मिलते है
तो मंजिल ऐ उन्हें हथकढ़ी मिलती है
और सिलसिला ता उम्र चलता है
तारीख पेशी सजा , और इनकाउनतर
हालत ऐ इनाम मिलता है

जो समझ रखते है शब्द की
परिभाशाओ की ,मर्यादायो की
उन्हें आधी रात उखाड़ा जाता है
भूखो को, महिलाओ को मासूमो को |


फरमान आया है
मुनादी बजवा दो
की कोई बाबा या गाँधी
फिर जनता को न जगाएं
इसका इलाज न करे
ये जनता कुछ दिनों की मेहमान है
फिर ये जिन्दा लाशे
हमारा ही निवाला होंगी |



पर क्यों ?
कही एक
राहगीर जे पी के समय से
एक राह तलाश रहा है
आजादी की
चहरे तलाश रहा है
आजादी के
क्यों ?
छुट्टी पे होने के बाबजूद
सुबह ५-६ बजे आया
क्यों ?
बंधाई उस हिम्मत को
उन क्रांतियो को
एक राह दिखाई
उसने आवाज़ दी

क्योकि सम्बेदना न मर जाये
इन हौसलों बालो की

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