रविवार, 1 मई 2011

बाबा का सच क्या है .....

मैं जब बचपन में बाबा या नारिगी रंग में रंगे परिधान में देखता तो हसी आती थी और बड़ा हुआ तो पाया की बच्चो को इंसानी रूप में दो ही चीज़ से डराया जाता था एक पुलिस और दूसरा बाबा ! और सायद ये हर गाव से लेकर हर सहर में येशा ही होता था जरा सोचने की बात है की समय के साथ पुलिस की जरुरत के कारण उनका डर कम हो जाता है पर बाबा का डर और नफरत कायम रहती थी

एषा बात चीत के बाद पता चला की कुछ अलग अलग समुदाय के मेरे मित्रो में भी यही बात का समर्थन किया और कुछ लोग का मन आज भी बाबाओ को पाखंडी मानता है जब की किसी भी बाबा ने उनका अहित नहीं किया और न ही उनके करीब में कोई इस पारकर की खबर मिली हां कुछ खबर जो मिली वो समाचार के मध्यम से मिली की किसी baaba ने गलत किया तो इस प्रकार की खबर तो आती ही है कि कोई पुलिश बाला कोई नेता या कोई अफसर भी इस्परकर के कामो में लिप्त पाया गया या कोई बहरूपिया इस पारकर के कामो में पाया गया तो इसमें बाबा को क्यों बदनाम किया जाता है क्या ये किसी साजिस का हिस्सा है कि या कोई नाराजगी जो बहुत समय से जाने अनजाने में हमने ही अपने लोगों को नहीं समझा

बचपन में स्कूल में एक pome सिखाई जाती थी बाबा बाबा ब्लैक शीप ..........और मैंने अकसर बच्चो को बाबाओ के ऊपर ये कमेन्ट करते सुना है की उनको बाबा दीखता है और वो बाबा बाबा ब्लैक शीप का गीत गाने लगते है एक सवाल मन में उठता है आज क्या अंग्रेजी मध्यम की शिक्षा में कविताओ की कमी थी या कुछ कविताओ में संस्क्रती का मज़ाक था इसको विरोध भाष के आधार पे रोका भी जा सकता था

गाँधी को बाबा नहीं महात्मा कहा गया और बापू कहा गया पर केवल कपडे का रंग छोड़ के दोनों का पहनावा एक ही था वो महात्मा गाँधी जिसने विदेश में बकालत पड़ी और देश में है त सूत बूट और बिलकुल अंग्रेगी परिधान और उनका सही पहनावा के साथ पहने थे नव्युबक थे और वकालत पढ़े भी भारत से अफिरिका तक बकालत का रुतवा दिखा चुके थे पर गाँधी जल्द ही जान गए की ये कानून भलाई नहीं लूटने के लिए है ये वो तरीका है जिसमे वक्ती खुद को नहीं समय को ढोस देता है ये तो जुए की तरह है जो जनता है वो जीतता है जो नहीं जनता है वो भाग्य को कचोटता है पर इसको ज्ञान नहीं मानता है क्योकि वो vidhya को chamatkaar मानता है

गाँधी देश में देश वाशियो के मन में गाँधी के पार्टी श्रधा नहीं दिखती उससे अधिक तो भारत देश के गाँधी परिवार और कुछ औधोगिक घराने और कुछ अभिनेताओ एवं नायिकाओ तक ही सिमित कर रह जाता है इसा लगता है की जो हमने ये अपना टीवी ख़रीदा है वो इनकी कहिरियत के लिए करीदा है और इनका तराना देखने के लिए ये दिश या दी टी एच ख़रीदा है

गाँधी को आदर्श माँ कर एक मुन्ना भाई की फिल्म हित होती है और गंध को ही आदर्श माँ कर अन्ना का आन्दोलन एक अविसनिय रूप में आता है पर एक किताब है गांधी की "मेरे सपनो का भारत " india on my dreams जो की किताब हिंदी में बहुत कम छापी है अगर आप को मिल जाये तो आपने आप को महान कहिये गा 30-४० रु की किताब है ये पर मिलना इतना मुस्किल की क्या बताया जाये हिंदी में क्योकि इस किताब के मध्यम से लोग गाँधी को समझ जाते और आज के गाँधी को भी

इस पारकर के वतान्वरण में गाँधी बाबा और धर्म में विस्वाश रखना और उसपर लोगों के चश्मे को कहना और अग्यानी लोगो का विपछ में बैठना और गायनी का खामोश होना सारी संभावनाओ को विराम लगा देता है की ये बंजर है और इसमें न खेती होगी न पानी आएगा सभ्यता इस्परकर की की हम अपनी सभ्यता को गली दे और हम से अच्छा कोई और नहीं मतलब जिस धर्म में है उसी को हम लोग काट ने को तैयार है पर अपमान में जीकर भी कुछ लोग धर्म का मान रखते हुए देखा है मैंने