सोमवार, 18 मई 2009

~~~~~~मैं हूँ न ~~~~~~

अगर आप खो गये है
या सो गए है
दुन्ढ़ रहे है किसी मदद गार को
इस भीड़ में
अपने यार को
जो आप का दे शाथ
पकड़ के हाथ
आप को फूलो सी सौगात
और सब कुछ मीठी
मुस्कराहट के साथ
अगर आप को याद है वो बात
जो मैं ने पहल भी कही है कई बार
दिल से मेरे यार
वो आज भी कहूँ
ये जरुरी नही
बस दोस्ती जरुरी है
पर उससे जयादा जरुरी
पक्का वादा जो स्वयम किया गया हो
सच में दोस्ती एक नया हस्सास है
दोस्त ,
मैं हूँ
आप के शाथ और आप किसके है साथ ? " "

शुक्रवार, 15 मई 2009

पहेली ....

बेफिक्री से जीना चाहता हूँ । कुछ हाथ नही लगने पर भी मस्त रहना चाहता हूँ ।क्या यह वश में है ?.......शायद !अबूझ पहेली तो नही हूँ ,शायद उतनी योग्यता भी नही है । सच कहूँ ...मै अबूझ बन कर रहना भी नही चाहता ।पहेली बुझाने या बुझने में मजा नही आता । खुले विचारों की कद्र करता हूँ ।जिंदगी को एक पहेली नही बनाना चाहता । क्या यह वश में है ?......शायद !

सोमवार, 11 मई 2009

~~~~माँ~~~~~


माँ

माँ माँ शब्दों की मोहताज़ नहीं
एक एह्स्सास है
माँ ठंडी छाँव मे सुलाती
आँचल दे आप धुप मे बेठी
मुझे धुप ना लगने देती
जन्म से पहले कोख मे रख
ठंडक देती माँ
क्या माँ मे तेरा ऋण उतार पाऊंगा
माँ तुने कोख मैं रखा
क्या मे तुझे साथ भी रख पाऊंगा
माँ माँ तू जननी मेरी
पहचान मेरी
क्या तेरी पहचान बन पाऊंगा
माँ तुमने सीचते सीचते पाला माली की तरह
क्या मैं तुम्हे ठंडी छाँव पहुचाहूँगा
कदम कदम बढ़ता देख
बचपन से जवानी मे पाले कई सपने तुने
क्या मे पूरा कर पाऊंगा
तेरा प्रेम निस्वार्थ
क्या मे स्वार्थ मे भी प्रेम कर पाऊंगा
माँ नहीं मैं तेरा ऋण ना चुका पाऊंगा
इस जन्म मे क्या मैं भी 'पवन' श्रवन बन पाऊंगा


पवन अरोडा

~~~~तुम~~~~~


तुम मुझे क्यूँ
अपने होने का एह्स्सास दिलाती हो
क्यूँ तुम चोरी चोरी
मेरे सपनो मे आती हो
तुम एह्स्सास हो मेरा
मेरे आस पास हो तुम
तुम्हे पाना मेरा सपना नहीं जिन्दगी है
तुम मेरी कल्पना नहीं हक्कीत हो
तुम तुम नहीं मेरी साँसे हो
इन आँखों की रौशनी हो तुम
मेरे दिल की धड़कन
फिजाओं मैं फैली खुशबू हो तुम
तेरी एक एक अदा मुझे अच्छी लगती है
जब जुल्फों को तुम इतरा के पीछे करती हो
ऐसा लगता है चाँद जो छुपा था
बादलो मैं निकल आया
मुस्कराने से तेरे
सूरज की तरह चमक उठता है मेरा जहां
तुम्हे पाना रब को पाना है
तुम्हे साथ ले इस जहाँ से दूर चले जाना है
जहाँ तुम और मैं
एक नया आशियाना बनायेंगे
अपनी प्यार भरी छोटी सी दुनिया बसायेंगे
~~~~~~पवन अरोडा~~~~~~~~

रविवार, 10 मई 2009

प्रेम पत्र


बहुत साल पहले एक छोटी सी कविता पढी थी, शायद किन्ही पल्लव जी ने लिखी थी , मुझे अब भी उतनी ही प्रभावी और सामयिक लगती है.......पढिये और बताइये क्या आपको भी.....

क्या तुम मुझे वे सारे पत्र लौटा दोगी,
जो मैंने लिखे थे तुम्हें,
एक एक कर कई बार,
तुम नहीं जानती,
यह ऐसा समय है,
जब प्रतिबन्ध लगा है सपने देखने पर,
कविताओं की बात करने पर,
जब दोस्त हँसते हैं,
और,
चिट्ठियाँ लिखना ,
लगभग मूर्खता समझा जाता है,
मैं पढ़ना चाहता हूँ,
उन पत्रों फ़िर एक बार,
आख़िर क्यूँ लिख गया था,
तुम्हें मैं वे प्रेम पत्र............

गुरुवार, 7 मई 2009

इरादा ....

इरादा ........ !
इरादा तो इतना है की कब्र से भी निकल आऊं ।
पर केवल उजाले के लिए । यही एक चीज मुझे कब्र से भी बाहर निकाल सकती है ।
मजाक नही कर रहा ....अभी तुमने मुझे जाना ही नही ।

बुधवार, 6 मई 2009

मैं क्या लिखू

मैं कुछ लिखूं या कुछ मैं लिखू
पर जब समझने वाला जान कर न समझे
तो मैं क्या लिखूं और क्यों लिखू