शनिवार, 25 जून 2011

जनता निकल रही है एक आन्दोलन को

बढ़ा दो तेल के दाम

बढ़ा दो गैस के दाम

क़त्ल कर दो सारे आम

की कोई नहीं चल पाए

न खा पाए , न पी पाए

न ही ये सपने में सोच पाए

हालातो से टकराना

लेकिन जो अब तक न हुआ वो अब होगा

अब होगा चौराहों पर , सडको पर , घर पर

पार्टी नहीं बंद करेगी ,

जनता निकल रही है एक आन्दोलन को

जो घर पे टी वी के सामने नहीं ,

कोम्पुटर पे नहीं , दोस्तों में नहीं,

बल्कि सीधे सरकारों को खड़ा करेगी

चौराहों पे......

खड़ा करेगी.......

ये जनता ..

अपने देश के लिए कुछ भी करेगी

ये जनता ......

जानती है और बताएगी

कितनी औकात है

जनता में ........

अब देखना है की

(जनता )इन मुर्दों में जिन्दा कितने है

श्री पुण्य प्रसून बाजपाई जी के लिए
उठते उफान को जब शब्द नहीं मिलते है
तो मंजिल ऐ उन्हें हथकढ़ी मिलती है
और सिलसिला ता उम्र चलता है
तारीख पेशी सजा , और इनकाउनतर
हालत ऐ इनाम मिलता है

जो समझ रखते है शब्द की
परिभाशाओ की ,मर्यादायो की
उन्हें आधी रात उखाड़ा जाता है
भूखो को, महिलाओ को मासूमो को |


फरमान आया है
मुनादी बजवा दो
की कोई बाबा या गाँधी
फिर जनता को न जगाएं
इसका इलाज न करे
ये जनता कुछ दिनों की मेहमान है
फिर ये जिन्दा लाशे
हमारा ही निवाला होंगी |



पर क्यों ?
कही एक
राहगीर जे पी के समय से
एक राह तलाश रहा है
आजादी की
चहरे तलाश रहा है
आजादी के
क्यों ?
छुट्टी पे होने के बाबजूद
सुबह ५-६ बजे आया
क्यों ?
बंधाई उस हिम्मत को
उन क्रांतियो को
एक राह दिखाई
उसने आवाज़ दी

क्योकि सम्बेदना न मर जाये
इन हौसलों बालो की

क्या बदलोगे तुम


क्या क्या बदलोगे ,

क्या बदलोगे तुम

हिन्दुस्तान में

पकिस्तान में

या इरान में

और अपने नाम में


क्या बदलोगे तुम इस दुनिया में

जब सब बदल गए है

जिन्दा मर गए है

कलेजे गल गए है


क्या बदलोगे तुम

दूध घी मिल्लता नहीं

और खुल गए मैखाने है

तुम्हारे सपने बैमानी

और उनके सपने अफसाने है


क्या बदलोगे तुम

गाव में बच्चे माँ का खून पी जी रहे है

और शहरों में माँ बियर पी जी रही है


क्या बदलोगे तुम

सब कुछ तो बदल गया

इमानदार एक गाली है

फूलो का चोर ही माली है

अमीर देश है ये

और घर घर कंगाली है


और क्या बदलोगे

सभ्यता संस्क्रति या धर्म

कुछ नहीं बदला

बस बदल गयी पहचान

कपडे बदले बोली बदली

और बदले अरमान

घर छूट गया

परिवार टूट गया

सब कह रहे है मतलबी इंसान

और क्या बदलोगे तुम

अपनी या मेरी - पहचान


मेरी आँखों में देख कर मुझ से कहो :-

" मैं शपथ लेता हूँ कि

सरकार कि माँ की

कमीनो कि बहन की

भ्रष्टो कि बेटी की

भावनाओ को ठेश नहीं पहुचौन्गा |

२: प्यासे को पानी जरुर पिलाऊंगा

३: देश की आबरू के लिए

अपना तन मन धन नहीं देखूंगा

४ : नहीं देखूगा उस नारी को

जो विदेशी लिबाश में लिपटी हो

५ : नहीं खरीदूंगा उस का सामान

जिसपर हो विदेशी होलोगार्म

६ : नहीं करूँगा उससे बात

जो कहते है अच्छे हालत

७ : मैं खुद में खुदा (भगवान ) धुन्धुंगा

कर इबादत , माफ़ी गुनाहों की

८ : अपने कर्म में धर्म को लाऊंगा

उसको अपना उद्देश बनाऊगा

इसके लिए मरना भी पड़ा तो

खुदा के लिए शीश भी कतऊंगा



मैं खुद को बदलूँगा खुदा से माफ़ी मागूंगा अपने हर उस गुनाह की जो

मै नासमझी में ,गलत प्रचार में , मैं धर्मो की नियम भूल गया ,




मंगलवार, 21 जून 2011

ख़त का राज ..............

यूँ तो ख़त लिखने का सिलसिला तो बंद हो गया है और अगर ख़त लिखा भी गया है तो प्रेम में नौकरी के लिए कार्यालय के लिए | पहले ख़त लिखा जाता था कैरियत के लिए और आज चाहत के लिए |
लेकिन पिछले दिनों एक चमत कार हुआ एक ख़त के कारण बहुत बड़ा चमत्कार जो काम देश की जनता मिडिया और समाज सेवी ने न किया वो ख़त कर गया | वो ख़त क्या था ...............

दिन 13 जून : अन्ना ने ख़त लिखा सोनिया जी को ..................
दिन २० जून : सोनिया जी ने अन्ना जी को ख़त लिखा .............
दिन २१ जून : अन्ना जी वार्ता में खुश थे कपिल जी भी वार्ता में खुश थे और बारता भी अच्छी हुयी |

येषा क्या था की एक पत्र में की जो जनता का डर नहीं जो किसी का खौफ नहीं वो जो हर बात बात पे खीचा तानी करते थे बात बात पे बैमानी करते थे वो डर गए एक पत्र से जो न डरे पत्रकार से जुटे की बौछार से

क्या था उस पत्र में

रविवार, 1 मई 2011

बाबा का सच क्या है .....

मैं जब बचपन में बाबा या नारिगी रंग में रंगे परिधान में देखता तो हसी आती थी और बड़ा हुआ तो पाया की बच्चो को इंसानी रूप में दो ही चीज़ से डराया जाता था एक पुलिस और दूसरा बाबा ! और सायद ये हर गाव से लेकर हर सहर में येशा ही होता था जरा सोचने की बात है की समय के साथ पुलिस की जरुरत के कारण उनका डर कम हो जाता है पर बाबा का डर और नफरत कायम रहती थी

एषा बात चीत के बाद पता चला की कुछ अलग अलग समुदाय के मेरे मित्रो में भी यही बात का समर्थन किया और कुछ लोग का मन आज भी बाबाओ को पाखंडी मानता है जब की किसी भी बाबा ने उनका अहित नहीं किया और न ही उनके करीब में कोई इस पारकर की खबर मिली हां कुछ खबर जो मिली वो समाचार के मध्यम से मिली की किसी baaba ने गलत किया तो इस प्रकार की खबर तो आती ही है कि कोई पुलिश बाला कोई नेता या कोई अफसर भी इस्परकर के कामो में लिप्त पाया गया या कोई बहरूपिया इस पारकर के कामो में पाया गया तो इसमें बाबा को क्यों बदनाम किया जाता है क्या ये किसी साजिस का हिस्सा है कि या कोई नाराजगी जो बहुत समय से जाने अनजाने में हमने ही अपने लोगों को नहीं समझा

बचपन में स्कूल में एक pome सिखाई जाती थी बाबा बाबा ब्लैक शीप ..........और मैंने अकसर बच्चो को बाबाओ के ऊपर ये कमेन्ट करते सुना है की उनको बाबा दीखता है और वो बाबा बाबा ब्लैक शीप का गीत गाने लगते है एक सवाल मन में उठता है आज क्या अंग्रेजी मध्यम की शिक्षा में कविताओ की कमी थी या कुछ कविताओ में संस्क्रती का मज़ाक था इसको विरोध भाष के आधार पे रोका भी जा सकता था

गाँधी को बाबा नहीं महात्मा कहा गया और बापू कहा गया पर केवल कपडे का रंग छोड़ के दोनों का पहनावा एक ही था वो महात्मा गाँधी जिसने विदेश में बकालत पड़ी और देश में है त सूत बूट और बिलकुल अंग्रेगी परिधान और उनका सही पहनावा के साथ पहने थे नव्युबक थे और वकालत पढ़े भी भारत से अफिरिका तक बकालत का रुतवा दिखा चुके थे पर गाँधी जल्द ही जान गए की ये कानून भलाई नहीं लूटने के लिए है ये वो तरीका है जिसमे वक्ती खुद को नहीं समय को ढोस देता है ये तो जुए की तरह है जो जनता है वो जीतता है जो नहीं जनता है वो भाग्य को कचोटता है पर इसको ज्ञान नहीं मानता है क्योकि वो vidhya को chamatkaar मानता है

गाँधी देश में देश वाशियो के मन में गाँधी के पार्टी श्रधा नहीं दिखती उससे अधिक तो भारत देश के गाँधी परिवार और कुछ औधोगिक घराने और कुछ अभिनेताओ एवं नायिकाओ तक ही सिमित कर रह जाता है इसा लगता है की जो हमने ये अपना टीवी ख़रीदा है वो इनकी कहिरियत के लिए करीदा है और इनका तराना देखने के लिए ये दिश या दी टी एच ख़रीदा है

गाँधी को आदर्श माँ कर एक मुन्ना भाई की फिल्म हित होती है और गंध को ही आदर्श माँ कर अन्ना का आन्दोलन एक अविसनिय रूप में आता है पर एक किताब है गांधी की "मेरे सपनो का भारत " india on my dreams जो की किताब हिंदी में बहुत कम छापी है अगर आप को मिल जाये तो आपने आप को महान कहिये गा 30-४० रु की किताब है ये पर मिलना इतना मुस्किल की क्या बताया जाये हिंदी में क्योकि इस किताब के मध्यम से लोग गाँधी को समझ जाते और आज के गाँधी को भी

इस पारकर के वतान्वरण में गाँधी बाबा और धर्म में विस्वाश रखना और उसपर लोगों के चश्मे को कहना और अग्यानी लोगो का विपछ में बैठना और गायनी का खामोश होना सारी संभावनाओ को विराम लगा देता है की ये बंजर है और इसमें न खेती होगी न पानी आएगा सभ्यता इस्परकर की की हम अपनी सभ्यता को गली दे और हम से अच्छा कोई और नहीं मतलब जिस धर्म में है उसी को हम लोग काट ने को तैयार है पर अपमान में जीकर भी कुछ लोग धर्म का मान रखते हुए देखा है मैंने

मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

पिछ्ले दिनो कि घटना
सुप्रीम कोर्ट : विदेशी पैसा लाओ ।
विपछ : विदेशी पैसा लाओ ।
मिडिया : विदेशी पैसा लाओ ।
जनता : विदेशी पैसा लाओ ।
प्रधान मत्री : कोशिश जारी है
सोनिया : लाने कि तैयारी है

पर हजूर इस म॑च कौन है जो देगा सुझाव .................