सोमवार, 2 अप्रैल 2012

सीख लिया

रो कर मैंने हँसना सीखा, गिरकर उठना सीख लिया
आते-जाते हर मुश्किल से, डटकर लड़ना सीख लिया

महल बनाने वाले बेघर, सभी खेतिहर भूखे हैं
सपनों का संसार लिए फिर, जी कर मरना सीख लिया

दहशतगर्दी का दामन क्यों, थाम लिया इन्सानों ने
धन को ही परमेश्वर माना, अवसर चुनना सीख लिया

रिश्ते भी बाज़ार से बनते, मोल नहीं अपनापन का
हर उसूल अब है बेमानी, हटकर सटना सीख लिया

फुर्सत नहीं किसी को देखें, सुमन असल या कागज का
जब से भेद समझ में आया, जमकर लिखना सीख लिया

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