लोगों की भीड़ में,
आदमी तलाश ,
रहा खुद को,
जाने क्यूँ,नहीं मिलता ,
कोई भी इंसान.....?
जानता था कि,
हर गम के बाद,
खुशी का आना ,
तय है,
फिर भी ताउम्र
तलाशता रहा सुकून,
जिन्दगी बीत गयी,
इसी के दरमियान....
न मिटटी मेरी, न हवा,
न पानी, न पाषाण,
फिर भी हर दिल में ,
है यही अरमान,
एक खुरचन धरती,
एक कतरा आसमान......
क्यूँ है न......?
ajay kumar jha...9871205767.....
7 टिप्पणियां:
ये है आपका मंच और आपकी बात
बहुत अच्छे भाई क्या कविता है
आशा है आप की ये कविता कियो को पसंद आयेगी
शक्ल हो बस आदमी सा क्या यही पहचान है।
ढ़ूँढ़ता हूँ दर-ब-दर मिलता नहीं इन्सान है।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
aap dono kaa bahut bahut dhanyavaad, padhne aur saraahne ke liye ....
आपका शब्दों का शानदार चयन, कविता के भावों को कई गुना बढा देता है।
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S.B.A.
TSALIIM.
aam aadami par fokas ki hui kavita kaaphi achchhi lagi ....
aaj wahi apne ko kinara khada hua pata hai ...
koi to use main stream me le aao bhai ...
aam aadami par fokas ki hui kavita kaaphi achchhi lagi ....
aaj wahi apne ko kinara khada hua pata hai ...
koi to use main stream me le aao bhai ...
फिर भी हर दिल में ,
है यही अरमान,
एक खुरचन धरती,
एक कतरा आसमान......
क्यूँ है न......?
सही है........सुंदर रचना.
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