बचपन के बाद जब ,जिस दिन भी , जिस पल भी ,हम सब कुछ समझने लगते हैं....वही सब जिसे दुनियादारी कहते हैं....उसी समय से लगता है जैसे एक आवरण, कोई मुखौटा ओढ के ...या कि वो खुद ब खुद ही हमें ढक लेता है ..जीने लगते हैं। ये मुखौटा ..समय असमय हमारे असली स्वरूप , हमारे सच को, छुपाने बचाने का काम करता है । ऐसा नहीं है कि हर बार ये किसी गलत उद्देश्य ...या किसी गलत नीयत के कारण होता है...बल्कि कई बार तो इस पर आपका....हमारा नियंत्रण भी नहीं होता ,.मगर ये आवरण आ जरूर जाता है ।तो आज इस मंच पर यही सवाल है आपसे मुखातिब..बताईये क्या आपको भी यही लगता है। क्या आप भी ओढ लेते हैं ऐसे आवरण....या कोई है ऐसा आपके आसपास..जो आपको लगता है कि ..जिसका सच का रूप आपके सामने नहीं आता .....और जो भी आपके मन में हो.....बांटिये न..। इस बात को आपकी प्रतिक्रियाओं के बाद आगे बढाया जाएगा...॥
सोमवार, 2 नवंबर 2009
आवरण ओढे जिंदगी...
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7 टिप्पणियां:
मुखौटे आज की जिन्दगी का अहम हिस्सा बन गया है. शायद हर कोई किसी न किसी समय इन मुखौटों का सहारा लेता है. हद तो तब होती है जब वह खुद का स्वरूप नहीं पहचान पाता है.
ACHCHCA LIKH HAI AAP NE
आज की आवश्यकता बन गया है मुखौटाय़ लेकिन मुझे इससे परहेज है।
ek achha swaal pesh kiya hai
अरे झा जी अगर ऐसे मुखौटे पहनेलोग देखने हैं तो सब से पहले नेताओं को ही देख लें हर चेहरा एक आवरण ओढे मिलेगा
वैसे कई मुखौटे तो इतने बडिया कम्पनी के होते हैं कि पहचान मे नहीं आते। पता नहीं कौन कौन से नये ब्राँड आ गये हैं मार्कीट मे । अपकी तलाश देखते हैं कहाँ तक खोज पाती है। शुभकामनायें
बहुत अच्छा लिखा है आप ने.
मेरा ब्लॉग
यहाँदेखें.
बहुत सुंदर
http://nanhen deep.blogspot.com/
http://adeshpankaj.blogspot.com/
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