बेफिक्री से जीना चाहता हूँ । कुछ हाथ नही लगने पर भी मस्त रहना चाहता हूँ ।क्या यह वश में है ?.......शायद !अबूझ पहेली तो नही हूँ ,शायद उतनी योग्यता भी नही है । सच कहूँ ...मै अबूझ बन कर रहना भी नही चाहता ।पहेली बुझाने या बुझने में मजा नही आता । खुले विचारों की कद्र करता हूँ ।जिंदगी को एक पहेली नही बनाना चाहता । क्या यह वश में है ?......शायद !
3 टिप्पणियां:
एक पहेली तो है ही यह
zindagi khud ek paheli hai........ek aboojh paheli........kaun pahlei chahta hai koi nhi magar phir bhi paheli ban hi jata hai.
aap blog ki shaan ho
hai na
ek pahelee jo hal hai
sabhi ke liye
aap blog ka prvandh kar sakte hai us par commnet kar ki isko hataya jaye
ye adhikaar aap ke paas surachit hai
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