गुरुवार, 4 जून 2009

युवा हुई संसद

इस बार जो जनादेश निकल कर सामने आया है उसने न सिर्फ खिचडी सरकार बनने की मजबूरी वाले हालातों से राजनितिक परिदृश्य को बाहर निकाला है बल्कि इस बार सबसे ज्यादा युवा सांसदों को अपने प्रतिनिधि के रूप में चुन कर देश के संचालन की जिम्मेदारी युवा कन्धों पर डाल दी है. ऐसे में जबकि देश की लगभग आधी आबादी युवाओं की श्रेणी में ही आती है तो ये तो स्वाभाविक है और बहुत सकारात्मक भी. एक तरफ जहाँ इन जीते हुए प्रतिनिधियों में अपनी नई सोच , नए विचार और अपनी नयी ऊर्जा के अनुरूप उत्साह और जोश देखने को मिलेगा, वहीँ चूँकि ये सब किसी न किसी राजनतिक घराने से सम्बंधित हैं इसलिए विरासत में मिला राजनितिक अनुभव भी उनकी कुशलता में इजाफा करेगा. जनता इस बार अपने इन युवा जनप्रतिनिधियों से कम से कम इस बात की उम्मीद तो लगा ही सकती है कि इस बार संसद सत्र में समय और पैसे की बर्बादी नहीं होगी..
इससे बढ़कर एक और अच्छी बात ये रही है कि इन नए सांसदों पर पूरा भरोसा जताते हुए इन्हें पहली बार में ही मंत्री पद का भार दे कर जहां जनता की भावना का सम्मान किया गया है वहीं काफी पहले से चली आ रही एक शिकायत , कि मंत्रीमंडल में उम्र के हिसाब से असंतुलन रहता है, भी थोड़ी दूर हो जायेगी..अब ये सांसदों का नया और युवा कुनबा भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में कितना प्रभावकारी साबित होगा ये तो वक्त ही बताएगा....मगर लोग ummeed तो nischit ही कर रहे हैं ......
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